यह मजदूर का हाथ है कातिया लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देता है।कई लोगों को सम्मानित किया जाता है मगर एक मजदूर है जिसे सम्मानित नहीं किया जाता है। दशरथ मांझी जिसने खुद मजदूरी कर पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया। एक डायलॉग भी मारा है सनी देओल ने यह मजदूर का हाथ है कातिया लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देता है । सच में मजदूर किसी भी चीज को आकार देने का कार्य करते हैं यूं कहिए मिस्त्री एक ड्राइवर है और गाड़ी के सारे इंजन जो काम कर रहे हैं वह मजदूर है ।मजदूर ना होते आज आपके घर ना होते आपकी सड़क है ना होती आप की बिल्डिंग नहीं होती आपके पूल नहीं होते आपके सड़क नहीं होती किसी भी योजना को पूरा करने के लिए मजदूर की आवश्यकता होती है मगर दुर्भाग्यपूर्ण आजकल मजदूरों का हक भी अमीरों ने छीन लिया है ।उन्होंने 10 मजदूरों की जगह एक अकेली काम करने वाली मशीन चलाकर कई मजदूरों का हक मार लिया है देश में एक तो बेरोजगारी है ऊपर से अमीरों ने उनको और बेरोजगार कर दिया है । जहां 100 लोगों को रोजगार मिलता वहां आज एक मशीन उस काम को कर रही है और लोग घरों में बैठे हैं रोटी के लाले पड़े हैं मजदूर बारिश हो धूप हो ठंड हो वह मेहनत करता है। आप को अगर अपना घर बनाना है तो आपको मजदूर की आवश्यकता है सरकार अगर सड़क बनाती है तो भी मजदूर की आवश्यकता पड़ती है पुल बनाया जाता है तो भी आवश्यकता पड़ती है मजदूर की नदी नालों में ऊंचे बांध बड़े-बड़े बिजली के तारों में लाइन कनेक्शन देना सारा काम मजदूर ही करता है। मजदूर दिखने में एक फटे हुए कपड़ों में सीधा-साधा वह व्यक्ति होता है जो बोलता कम है काम ज्यादा करता है क्योंकि उसका बदन हर रोज काम करने से टूटा रहता है वह दर्द बना रहता है। जनता एक पुल के लिए आवाज उठाती है और राजनेता व शासन-प्रशासन उस पुल के लिए प्लानिंग करते हैं मगर उस पूल को सिर्फ प्लानिंग से ही नहीं बनाया जाएगा उस पुल को बनाने के लिए जरूरत होती है ताकत की और वह ताकत मजदूर के पास होती है़। जो उसका दुरुपयोग नहीं करता है समाज की भलाई के लिए ही करता है लोग व्यामशाला में जाकर अपनी बॉडी बनाते हैं और उस बॉडी को लोगों को दिखाते हैं या लोगों को डराते हैं मगर वह बॉडी किसी काम की नहीं वह बॉडी तब काम आएगी जब वह किसी समाज सेवा या किसी की भलाई का काम करता है भारत में अनेक ऐसे स्थान है जहां लोग अक्सर घूमने जाते हैं चाहे वह ताजमहल हो या कुतुबमीनार हो उनको बनाने का कार्य मजदूर ही करता है। अगर मजदूर ना हो तो यह सब खुद बनाने में कितनी मेहनत लगेगी आपको तब पता चलेगा सिर्फ मुंह से बोल देने से ही काम नहीं होता उस काम को करने के लिए बदन को तोड़ना पड़ता है शरीर को दर्द देना पड़ता है दुख देना पड़ता है तब जाकर वह काम बनता है । आप एक चप्पल पहन रहे हैं वह मजदूरों ने बनाई है आप बिस्कुट खा रहे हैं उसमें मजदूरी की गई है आप अनाज खा रहे हैं उस पर किसानों ने मजदूरी की है आप कपड़े पहन रहे हैं उस पर मजदूरी की है हर चीज के लिए मजदूरी करनी पड़ती है और उस मजदूर का कहीं भी नाम नहीं लिया जाता है सिर्फ उन बड़े-बड़े नेताओं का और उस शासन प्रशासन और सरकार का जिन्होंने मुंह से बोल हैं दिया यह कार्य किया अलाना फलाना नेता ने यह बनाया है। मजदूर पर अगर लिखा जाए तो एक किताब भर जाएगी मगर आज मजदूर दिवस है और मजदूरों को सलाम है उनकी मेहनत पर मजदूरों को भी कहीं न कहीं सम्मान मिलना चाहिए कद्र होनी चाहिए।