आसमान की परी,उड़ानों की शौकीन कल्पना चावला को कौन नही जानता? भारत का नाम विश्व पटल पर रौशन करने वाली कल्पना चावला की आज पुण्यतिथि है। कल्पना उन 7 अंतरिक्ष यात्रियों में से एक थी जिनकी धरती के वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करने के दौरान स्पेस शटल कोलंबिया में मौत हो गयी थी।उनके निधन के बाद उनके सम्मान में कई विश्वविद्यालयों, छात्रवृत्ति और यहां तक कि सड़कों का नामकरण किया गया. पिछले साल सितंबर में, यूएस स्थित एयरोस्पेस और रक्षा कंपनी नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन ने अपना अगला स्पेसशिप का नाम चावला के नाम पर रखा।अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की मौत 1 फरवरी 2003 को अंतरिक्ष से वापस लौटते वक्त हुई थी। अक्सर कल्पना कहा करती थीं मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनीं हूं, हर पल अंतरिक्ष के लिए बिताया और इसी के लिए मरूंगी. यह बात उनके लिए सच भी साबित हुई. उन्होंने 41 साल की उम्र में अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा की, जिससे लौटते समय वह एक हादसे का शिकार हो गईं. आइए जानते हैं उनकी लाइफ से जुड़ी ऐसी बातें जो बहुत कम लोग जानते है।
अंतरिक्ष यान कोलंबिया शटल STS-107 धरती से करीब 2 लाख फीट की ऊंचाई पर था। उसे धरती पर पहुंचने में महज 16 मिनट का समय लगने वाला था. लेकिन अचानक अंतरक्षि यान से नासा का संपर्क टूट गया और अगले कुछ मिनटों में इसका मलबा अमेरिका के टैक्सस राज्य के डैलस इलाके में फैल गया.
कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च, 1962 को हुआ था लेकिन ऑफिशल जन्म तिथि 1 जुलाई, 1961 दर्ज करवाई गई थी ताकि उनके दाखिले में आसानी हो। उनका जन्म हरियाणा के करनाल में हुआ। पिता बनारसी लाल चावला और मां संजयोती के घर 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। घर में सब उन्हें प्यार से मोंटू बुलाते थे। उनकी शुरू की पढ़ाई तो करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई। जब वह आठवीं क्लास में पहुंचीं तो उन्होंने अपने पिता से इंजिनियर बनने की इच्छा जाहिर की। पिता चाहते थे कि वो डॉक्टर या टीचर बने।पढ़ाई के साथ-साथ उनकी रूचि खेलों में भी थी। उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में कराटे भी सीखा था। उन्हें बैडमिंटन खेलना और दौड़ों में भाग लेना भी काफी पसंद था।जिस दिन कल्पना ने अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी उसी दिन उनकी मौत तय हो गई थी.इतना ही नहीं बल्कि कल्पना के साथ गए अन्य 6 अंतरिक्ष यात्रियों के अंत का अलार्म भी डिस्कवरी की उड़ान के साथ बज चुका था. 16 दिन तक ये सभी लोग मौत के साये में जी रहे थे. नासा को इन सभी बातों की जानकारी थी लेकिन फिर भी उसने किसी को कुछ पता नहीं लगने,इस बात का खुलासा खुद कोलंबिया के प्रोग्राम मैनेजर ने किया था।नासा के वैज्ञानिक दल नहीं चाहते थे कि मिशन पर गए अंतरिक्ष यात्री घुटघुट कर अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हों को जिएं. उन्होंने बेहतर यही समझा कि हादसे का शिकार होने से पहले तक वो मस्त रहें. मौत तो वैसे भी आनी ही थी.” वेन हेल की मानें तो अंतरिक्ष में गए यात्रियों को भी अगर इस बात को बता दिया जाता तब भी वह ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन रहने तक अंतरिक्ष का चक्कर ही लगा सकते थे, ऑक्सीजन खत्म होने पर भी उनकी मौत तय थी. ये खुलासा इतना सनसनीखेज है कि कई लोग इसपर यकीन तक करने को तैयार नही हैं.