

केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित है! पर्यावरणविद जलवायु परिवर्तन के लिए ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के साथ ही हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप के साथ लगातार जनसंख्या वृद्धि मान रहे है! निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें खासी प्रभावित होने से भविष्य में काश्तकारों के सन्मुख दो जून रोटी का संकट खड़ा हो सकता है इसलिए काश्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है! केदार घाटी के हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से भविष्य में सुरम्य मखमली बुग्यालों में उगने वाली बेशकीमती जडी़ – बूटी कुखणी, माखुणी, जया – विजया सहित दर्जनों प्रजाति विलुप्त हो सकती है! प्रति वर्ष ग्लोबल वार्मिंग की समस्या में निरन्तर इजाफा होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है! ग्लोबल वार्मिंग की समस्या में निरन्तर वृद्धि होना हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप, जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होना तथा वाहनों के आवागमन में निरन्तर इजाफा होने के साथ पर्यावरण प्रदूषण मुख्य कारण माना जा रहा है! विगत एक दशक की बात करे तो नवम्बर से मार्च तक हिमाच्छादित रहने वाले भूभाग दिसम्बर माह में बर्फ बिहीन होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित है तथा भविष्य के लिए शुभ संकेत नही मान रहे है! एक दर्शक पूर्व नवम्बर माह में हिमाच्छादित रहने वाला भूभाग —— केदारनाथ, मदमहेश्वर, गांधी सरोवर, बासुकीताल, मनणामाई तीर्थ, पाण्डवसेरा, नन्दीकुण्ड, विसुणीताल, देवरिया ताल, पवालीकांठा, तुंगनाथ, चोपता, राकसी डांडा, सौर भूतनाथ, मोहनखाल, कार्तिक स्वामी क्षेत्रों, मोठ बुग्याल! एक दशक पूर्व हिमाच्छादित रहने वाले सीमान्त गाँव —————– तोषी, त्रियुगीनारायण, गौरीकुण्ड, चौमासी, जाल मल्ला, चिलौण्ड, गौण्डार, रासी, गडगू, सारी, किणझाणी! निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसल प्रभावित ————- केदार घाटी के निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, सरसों की फसलें खासी प्रभावित हो गयी है जिससे काश्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है तथा भविष्य में काश्तकारों के सन्मुख दो जून रोटी का संकट पैदा हो सकता है! प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर आई गिरावट ———— केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से मन्दाकिनी सहित सहायक नदियों के साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट देखने को मिल रही है, आने वाले दिनों में यदि मौसम का मिजाज इसी प्रकार रहा तो अप्रैल से 20 जून तक भारी पेयजल संकट गहरा सकता है!






