

टनकपुर में आज भैया दूज का पर्व बहुत ही पारंपरिक व खुशी के माहौल मैं बनाया गया। आज बहनो ने अपने भाइयों के टीका चंदन तिलक लगाकर आरती की तथा भाइयों के सर को चुय्डे और तेल से पूजा गया। 1 दिन पहले धान को भिगा कर उस धान को गर्म कढ़ाई में भूनकर ओखल में कूटा जाता है जब वह चपटा हो जाता है तब जाकर चूय्ड़ा बनता है। और दूब तथा चुय्डे से बहने जब भाइयों का सर पूजती है तो कहती है कि , जी रए, जाग रए,
तिष्टिए, पनपिए,
स्याव जस बुद्धि हैजो,
स्यू जस पराण हैजो
आकाश बराबर उच्च हैजै,
धरती बराबर चकाव हैजै,
दूब जस फलिये,
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पानी छन तक”
आशीर्वाद के इन कुमाऊनी बोलों का अर्थ हुआ- “जीते रहो,जागरूक रहो, स्थिरता पूर्वक तरक्की करो, तुम्हारी सियार के समान तीव्र बुद्धि हो,सिंह के समान बलशाली बनो, तुम आकाश के समान ऊंचाइयां छुओ, पृथ्वी के समान धैर्यवान बनो, दूर्वा घास के समान तुम्हारा फैलाव हो, जब तक हिमालय में हिम रहे गंगा नदी में पानी रहे तब तक जियो”। इस आशीर्वाद के साथ ही अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती है। भाई अपनी बहनों को धन या उपहार देता है। भैया दूज मैं पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के बुलाने पर उनके घर जाते हैं। तब यमुना बहुत प्रसन्न होती है . इस शुभ कार्य से पहले वे सभी नरक-वासियों को मुक्त कर देते हैं. उनके इस कृत्य के बारे में जानकार बहन यमुना बहुत प्रसन्न होती हैं और कहती हैं कि आज के दिन अपने भाई का टीका करने व उसे भोजन करवाने वाली बहन को कभी भी यम का (अर्थात मृत्यु का) भय नहीं होगा। भैया दूज का यह पर्व हर जगह धूमधाम से बनाया जाता है।






